निल शुक्राणु Nil Sperm कैसे बचें इस समस्या से ?

निल शुक्राणु Nil Sperm कैसे बचें इस समस्या से ?

शुक्राणुओं के स्वास्थ की चिंता है ? निल शुक्राणु (Nil Sperm) का डर है? बच्चे नहीं हो रहे ? निःसंतानता का है डर ? किन चीज़ों से बचें ? कैसे रखें शुक्राणुओं का ध्यान ? आइये आज के इस लेख में शुक्राणु और निल स्पर्म से जुड़े सभी ज़रूरी तथ्यों को जानें।

निल शुक्राणु (Nil Sperm) क्या है ?

“निल शुक्राणु”(Nil Sperm) एक स्थिति है जिसमें पुरुष की जननांग में पाए जाने वाले शुक्राणुओं की संख्या और साक्षरता में कमी होती है। यह अवस्था उन पुरुषों में दिखाई देती है जिनके शुक्राणुओं की संख्यात्मक या कार्यात्मक प्रदर्शन में कमी होती है, जिसके कारण प्रजनन क्षमता प्रभावित हो सकती है। इसे “आजोस्पर्मिया”(Azoospermia) भी कहा जाता है। आसान भाषसे में कहें तो बच्चे पैदा न होने का एक कारन निल स्पर्म यानि Azoospermia भी होता है, जिसमे के शरीर में बनने वाले शुक्राणुओं में कमी आ जाती है।

शुक्राणुओं की जाँच ? SEMEN TEST

सेक्स समस्या के कारण जब कोई ममनुष्य बच्चे पैदा नहीं कर पता है तब उसका स्पर्म एनालिसिस या सीमेन टेस्ट किया जाता है। इस जांचे को किसी भी सामान्य लैब से किया जा सकता है। इस जाँच के परिणाम एक से दो दिन में ही आ जाते हैं। शुक्राणु की जांच आवश्यकतानुसार विभिन्न तरीकों से की जा सकती है। यहाँ एक सामान्य प्रक्रिया दी गई है:

 

  1. शुक्राणु संख्यात्मक Sperm Count और साक्षरता Sperm Health की परीक्षा: इस परीक्षण में, पुरुष की नमूना लिया जाता है और उसके शुक्राणुओं की संख्या और साक्षरता को मापा जाता है। यह आमतौर पर स्पर्म काउंट और स्पर्म मूत्रण की परीक्षण के रूप में की जाती है।
  2. माइक्रोस्कोपिक जांच Sperm Shape : शुक्राणु को माइक्रोस्कोप के तहत देखकर उनकी साक्षरता, संरचना और आकार की जांच की जा सकती है।
  3. स्पर्म मूत्रण परीक्षण: इस परीक्षण में, शुक्राणु के नमूने को विशेष प्रयोगशाला में निष्कर्षित किया जाता है और उनकी साक्षरता और संरचना की जांच की जाती है।
  4. DNA टेस्ट: कई मामलों में, यदि शुक्राणु में विशेष संरचनिक परिवर्तन होते हैं, तो डीएनए (DNA) के टेस्ट से भी जांच की जा सकती है।
  5. शुक्राणु संवर्धन परीक्षण: इस परीक्षण में, शुक्राणु को एक विशेष प्रयोगशाला में मूत्रण किया जाता है और उनकी साक्षरता, मोटाई, और आकार की जांच की जाती है। यह परीक्षण शुक्राणु की क्षमता को समझने में मदद कर सकता है।
  6. हॉर्मोनल टेस्ट: कई बार, शुक्राणु की संख्या और साक्षरता में कमी हार्मोनल असंतुलन के कारण हो सकती है। इस स्थिति को जांचने के लिए हॉर्मोनल टेस्ट भी किए जा सकते हैं।
  7. स्पर्म आवदान और जांच: अक्सर प्रजनन विशेषज्ञ एक विशेष आवदान करवाते हैं, जिसमें शुक्राणु का नमूना लिया जाता है और उसे विशेषज्ञीय प्रयोगशाला में जांचा जाता है।

 

 

कितने शुक्राणु सामान्य माने जाते हैं ?

सामान्यत: एक मिलीलीटर में पुरुष के शुक्राणुओं की संख्या का मानचित्रित मान लगभग 15 मिलियन से 200 मिलियन तक होता है। यदि आपके शुक्राणु संख्यात्मक अथवा साक्षरता में कमी है तो चिकित्सक से सलाह प्राप्त करना उपयुक्त हो सकता है।

यदि पुरुष के एक मिलीलीटर में शुक्राणुओं की संख्या 15 मिलियन से कम होती है, तो इसे कम स्पर्म संख्या या “ओलिगोस्पर्मिया” कहा जाता है। यह संख्या अलग-अलग लैबोरेटरीज और शोध के आधार पर भिन्न हो सकती है, लेकिन आमतौर पर यह मानक मान होता है।

ओलिगोस्पर्मिया क्या होता है?

ओलिगोस्पर्मिया पुरुषों में कम शुक्राणुओं की संख्या के लिए मेडिकल शब्द है। महिला को गर्भवती करने के लिए वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या 15 मिलियन प्रति मिलीलीटर से काम नहीं होनी चाहिए। यदि शुक्राणुओं की संख्या इससे कम है, तो स्थिति को ओलिगोस्पर्मिया या ओलिगोज़ोस्पर्मिया कहा जाता है।

 “आलोगोस्पर्मिया” एक पुरुष की जननांग में शुक्राणुओं की संख्या में आपातकालीन कमी को दर्शाता है। यह शुक्राणु संख्यात्मक अथवा साक्षरता में कमी के रूप में प्रकट हो सकता है और प्रजनन क्षमता पर असर डाल सकता है। इसके कारण विभिन्न हो सकते हैं। 

आलोगोस्पर्मिया के कारण

  1. इन्फेक्शन: जननांग में संक्रमण, जैसे कि शुक्राणु में इन्फेक्शन, आलोगोस्पर्मिया का कारण बन सकता है।
  2. वातावरणिक कारण: अधिक उच्च तापमान, बेहद बुरी आदतें, धूप में अधिक समय बिताने आदि कुछ वातावरणिक कारण भी शुक्राणु संख्यात्मक में कमी का कारण बन सकते हैं।
  3. आहार और लाइफस्टाइल: गलत आहार, नियमित व्यायाम नहीं करना, अत्यधिक तनाव, धूम्रपान और मादक पदार्थों का सेवन आलोगोस्पर्मिया के कारण बन सकते हैं।
  4. गुर्दे की समस्याएं: किसी गुर्दे की समस्या भी आलोगोस्पर्मिया का कारण बन सकती है, क्योंकि गुर्दा स्वास्थ्य और शुक्राणुओं के नियोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  5. हार्मोनल असंतुलन: हार्मोनों के असंतुलन के कारण भी आलोगोस्पर्मिया हो सकता है, जैसे कि थायरॉइड या प्रोलैक्टिन के असंतुलन के कारण।
  6. रोग और उपचार: कुछ रोग और उनके उपचार, जैसे कि शुक्राणु संबंधित कैंसर के उपचार के दौरान उपयोग होने वाली रेडिएशन या कीमोथेरेपी, आलोगोस्पर्मिया का कारण बन सकते हैं।
  7. विशेष रोग: कुछ बीमारियाँ जैसे कि डायबिटीज, हार्मोनल स्थितियाँ और जैसी विशेष बीमारियाँ भी आलोगोस्पर्मिया के कारण बन सकती हैं।
  8. आयुक्त उम्र: आयु बढ़ने के साथ, शुक्राणु संख्यात्मक में कमी हो सकती है।
  9. शराब और ड्रग्स का सेवन: अत्यधिक शराब पीना और नशीली ड्रग्स का सेवन भी आलोगोस्पर्मिया के कारण बन सकते हैं।
  10. आंत्रिक विकार: किसी आंत्रिक विकार, जैसे कि विकृत शुक्राणु पाथर, निर्माण, या शुक्राणुओं की पाठकारी, के कारण भी आलोगोस्पर्मिया हो सकता है।
  11. आपातकालीन कारण: उच्च तापमान, अत्यधिक तनाव, या उच्च मात्रा में जलवायु परिवर्तन जैसे आपातकालीन स्थितियाँ भी शुक्राणु संख्यात्मक में कमी के कारण बन सकती हैं।
  12. जननांग के चोट, दर्द, या घाव: जननांग में होने वाली किसी चोट, दर्द, या घाव के कारण भी शुक्राणु संख्यात्मक में कमी हो सकती है।
  13. खानपान और व्यवहार: अनुशासनहीन खानपान, तंबाकू या अन्य नशीले पदार्थों का सेवन, और अनियमित व्यवहार भी शुक्राणु संख्यात्मक में कमी के कारण बन सकते हैं।

आलोगोस्पर्मिया का उपचार संभव हो सकता है, लेकिन यह काफी आवश्यक है कि आप चिकित्सक से सलाह प्राप्त करें और विशेषज्ञ की दिशा निर्देशित उपचार लें।

आपके विशिष्ट मामले के आधार पर, निम्नलिखित कुछ उपायों और उपचारों का प्रयास किया जा सकता है:

  1. चिकित्सा संदर्भ में चिकित्सक की सलाह: सबसे पहले, आपको चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए। वे आपके शुक्राणु संख्यात्मक की स्थिति का मूल्यांकन करेंगे और उपचार की सलाह देंगे।
  2. दवाइयाँ: कुछ दवाइयाँ और सुप्लीमेंट्स शुक्राणुओं की संख्यात्मक को सुधारने में मदद कर सकती हैं। चिकित्सक आपके लिए उपयुक्त दवाइयाँ सुझा सकते हैं।
  3. आहार और व्यायाम: स्वस्थ आहार और नियमित व्यायाम के माध्यम से आपके शुक्राणु संख्यात्मक को सुधारा जा सकता है।
  4. योग और प्राणायाम: कुछ योगासन और प्राणायाम भी शुक्राणु संख्यात्मक में सुधार करने में मदद कर सकते हैं।
  5. आयुर्वेदिक औषधियाँ: आयुर्वेद में भी कुछ औषधियाँ और पारंपरिक उपाय शुक्राणु संख्यात्मक को सुधारने में मदद कर सकते हैं।
  6. उपचारों की सावधानियाँ: किसी भी उपचार को आराम से और चिकितक की सलाह के बिना शुरू न करें। चिकित्सक के सुझाव का पालन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

शुक्राणु की स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना महत्वपूर्ण होता है:

  1. स्वस्थ आहार: पोषणपूर्ण आहार खाना शुक्राणु की स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है। आपको प्रोटीन, विटामिन, खनिज और अन्य पोषणपूर्ण तत्वों की पर्याप्त मात्रा मिलनी चाहिए।
  2. हिडन फैट्स से सावधान: अत्यधिक हिडन फैट्स और प्रोसेस्ड फूड के सेवन से बचें, क्योंकि यह शुक्राणु की स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है।
  3. हिड्रेशन: पर्याप्त पानी पीना शुक्राणु की स्वास्थ्य को सुधारने में मदद कर सकता है।
  4. व्यायाम: नियमित व्यायाम करना शुक्राणु की स्वास्थ्य को सुधारने में मदद कर सकता है।
  5. स्ट्रेस प्रबंधन: स्ट्रेस को प्रबंधित रखने के लिए योग, मेडिटेशन, या अन्य तंत्र-मंत्र तकनीकों का सहायता लें।
  6. तंबाकू और अल्कोहल से दूर रहें: तंबाकू और अल्कोहल का सेवन शुक्राणु की स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है।
  7. आवश्यक खनिजों की पूर्ति: जैसे कि सेलेनियम, जिंक, फोलिक एसिड आदि, आपके शुक्राणु की स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण हैं।
  8. नियमित जांच: यदि आपको किसी तरह की शुक्राणु संबंधित समस्याएँ हैं, तो नियमित चिकित्सकीय जांच और टेस्टों का पालन करें।
  9. सही समय पर सम्भोग: सम्भोग को सही समय पर करना भी शुक्राणु की स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण होता है।

आज हमने निल शुक्राणु से जुडी बिमारियों के बारे में जाना और समझा। ऐसी समस्याओं से कैसे निपटें और इनको न होने देने के लिए क्या करें।हमने आपको बताया की किस प्रकार शुक्राणुओं  ध्यान रखा जाता है और अच्छा यही होता है के आप अपने को किसी बीमारी के प्रकोप में आने से बचाएं। आज के इस लेख में हमने आपको बताया के आजोस्पर्मिया और ओलिगोस्पर्मिया क्या होता है। साथ ही इन बिमारियों के इलाज के लिए क्या करना आवश्यक है। सेक्स समस्याओं से सम्बंधित किसी भी जानकारी के लिए आप अन्य ब्लॉग भी पड़ सकते हैं साथ ही इन समस्याओं से निपटने के लिए उपचार की भी जानकारी ले सकते हैं।

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